यूँ तो हर तरह का संगीत जबरदस्त अनुशासन का उदहारण है। जब कोई गान किसी पहले से तैयार म्यूजिकल म्यूजिकल ट्रैक पर करना हो तो वह और भी ज्यादा अनुशासन की मांग करता है। साजिंदों की संगत में लाइव वाद्य यंत्रों के साथ गाना गायक को शायद थोड़ी छूट देता है। वह छूट होती है फ्रेम से थोडा बाहर जाकर कोई नवाचार करने की यहाँ गायक और संगत दोनों जीवंत माध्यम हैं, दोनों एक दूसरे का सहयोग करके आगे बढ़ते हैं। दोनों के लिए ही उत्कृष्टता का आग्रह मोटिवेशन का उत्स है। यहाँ उत्कृष्टता के मापदंड परिभाषित नहीं, दोनों ही, गायक और संगत प्रत्यक्ष प्रस्तुति के वक़्त खुद उत्कृष्टता के मापदंड रचते हैं। म्यूज़िक ट्रैक पर गायन में फ्रेम से बहार जाने की छूट नहीं है। यहाँ आपको यन्त्र के साथ दौड़ना है। और किसी ने पहले से उत्कृष्टता के मापदंड तय कर रखे हैं, उनके साथ न्याय करना ज़रूरी होता है, इससे कम पर काम नहीं चलेगा। बहरहाल कोई भी तरीका हो दोनों का आउटकम संगीत का लुत्फ़ ही होता है, श्रोता के लिए और गायक के लिए भी।
पिछले लगभग डेढ़ साल से म्यूजिकल ट्रैक पर इस तरह की गायकी से अलवर के संगीत प्रेमी रूबरू हो रहे हैं "स्वरांजलि संगीत क्लब की मार्फ़त।
गत 10 अक्टूबर 2015 को स्वरांजलि संगीत क्लब ने "गाता रहे मेरा दिल..." एक संगीतमय शाम आयोजित की। इस संगीत संध्या के बहाने से अलवर के गायक कलाकारों ने किशोर कुमार की यादों को ताज़ा किया। इसी कार्यक्रम में जानेमाने संगीतकार रवीन्द्र जैन के निधन पर सबने मौन धारण करके श्रद्धांजलि दी। इस संगीत संध्या में अलवर के कलाकारों ने किशोर कुमार के गानों को अपनी आवाज में गाकर शाम को सुरमयी बना दिया। कार्यक्रम को फरमाइशी स्वरुप भी दिया गया था। श्रोताओं के अनुरोध पर कलाकारों ने गीत सुनाकर अपनी गायकी की परिपक्वता का परिचय दिया। नए पुराने सभी कलाकारों ने एकल, युगल, सामूहिक व मेंडली विधाओं में अपनी प्रस्तुतियाँ दी। इसी के समान्तर सञ्चालन भी बहुत सधा हुआ था। सरला जैन व महिपाल सिंह जी की उद्घोषक जुगलबंदी लगातार कार्यक्रम को रोचक बनाते हुए चल रही थी। दर्शकों के साथ सीधे संवाद बनाना व संगीत के गुरुओं चीनू जी व विनीत जी से किशोर कुमार जी के जीवन के विभिन्न रोचक प्रसंगों को सुनना जहाँ नयी पीढ़ी के लिए ज्ञानवर्द्धक रहा वहीं इन उस्तादों के लिए सम्मान स्वरुप भी था। विनीत जी व चीनू जी ने पिछले 10-15 वर्षों में एक पीढ़ी को तराशा है जिसके नतीजे दिखाई देते हैं।
इस कार्यक्रम से जुडी कुछ उल्लेखनीय बाते है -
- यहाँ कोई वीआईपी कल्चर नहीं हैं। खास और आम मेहमानों वाला फर्क नज़र नहीं आता।
- कर्यक्रम में बच्चों से दीप प्रज्ज्वलन करवाना एक एक नयी पहल है।
- एक ही जगह पर कार्यक्रम की बारंबारता से इवेंट व स्थान दोनों को पहचान मिलती है। निःसंदेह स्वरांजलि ने ही रंगकर्मियों के सामने यहाँ गतिविधियाँ करने का एक विकल्प दर्शाया। आज रंगकर्मी आदिनाथ सभागार को एक विकल्प के तौर पर देख रहे हैं।
बहुत कुछ है जो साझा हो सकता है।
स्वरांजलि परिवार को सफल प्रस्तुति के लिए बधाई।
दलीप वैरागी
9928986983
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बहुत ही खूब लिख दिया है ,दिल की कुछ छुपी बात भी नज़र आई है ।
ReplyDeleteसामर्थ है तभी अतिथी की परम्परा आवश्यक नहीं समझी , सभी इस तथ्य से परिचित है कि अतिथि आवश्यक क्यूँ है ?
बहुत ही अच्छी प्रस्तुतियां थी ।
रंगमंच की गतिविधियाँ सकारात्मक चलती रहे , शुभकामना ।